इन्द्रधनुष!

कह देना उनको,यह कविता है
राजनीति का जाल नहीं है
मैं इन्द्रधनुष हूँ
मेरा रंग सिर्फ लाल नहीं है ।


शैशव में जब जनतंत्र हमारा
खेल रहा था कंचों से
कविते! तब भी तू ही जूझी थी
कपटी छल प्रपंचों से
फिर आज क्यों शीश नत हैं,
क्यों हाथों में भाल नहीं है
मेरा रंग सिर्फ लाल नहीं है ।

धनु बड़े विशाल पड़े हैं
प्रत्यंचों को चढ़ाए कौन?
कसीदेकारी ही धंधा है
रंगमंचों को सजाए कौन?
जिनकी लेखनी बिक गई, सुन लें
उनसे दोयम कोई विषव्याल नहीं है
मेरा रंग सिर्फ लाल नहीं है ।


दो एक हुकुमत जीतोगे
दो एक अगवा कर लोगे
इतने में ही क्या मानचित्र
राष्ट्र का भगवा कर लोगे ?
साहब! यह हिन्द है
कोई  जागीरी माल नहीं है
मेरा रंग सिर्फ लाल नहीं है ।

पुनश्च: आजकल लोग वामपंथी कहने लगे हैं पुरानी कविताओं को देखकर, तो स्पष्टीकरण देना जरूरी हो गया था कि कविता एक रंग कि नहीं होती , कभी लाल लगेगी तो कभी भगवा भी। उसे तो विचारधाराओं कि जंजीर से सदा मुक्त रखा है मैंने 😊

102 thoughts on “इन्द्रधनुष!”

  1. अच्छी कविता, पर विषय धुंधली सी लग रही है, खुल कर लिखिये, अभिव्यक्ति की आजादी बची हुई है, यहाँ चीन का वामपंथ नहीं है

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    1. मैं लिखता हूँ तो अपने आप को पूर्ण रूप से उड़ेल देता हूँ कविता में, यहाँ भी वही करने का प्रयास किया है मैंने।

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      1. नहीं सर अपनी अपनी व्याख्या हो सकती है
        मैं आपके भावों का बहुत सम्मान करता हूँ 😊

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  2. कही दो पंक्तियाँ पढ़ी थी,
    जैसे हो किसी नदी के दो किनारे
    कहाँ कवि की कलम कहाँ सत्ता के गलियारे

    यह देख कर अच्छा लगा की कविता का सिंहासन से संग्राम अभी तक जारी है

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  3. भगवा करने की जरूरत किसे है जनाब,
    इसी रंग का खून हमारा है,
    और जो आजादी हमने पायी इसे बहाकर,
    ये भगवा रंग हमारा है।

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  4. आपकी बंधन मुक्त कविता और इंद्रधनुष ने बड़ा सही रंग बिखेरा है और राजनीति करनेवालों के लिये भी संकेत स्पष्ट है —
    मेरा रंग सिर्फ लाल नहीं है ।

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  5. स्पष्टीकरण देने की जरूरत क्यों? कोई वामपंथी कहने लगा है तो इसका मतलब यह है कि कहने वाला जरूर दक्षिणपंथी हो गया है। तो फिर स्पष्टीकरण देने की जरूरत आप ही को क्यों? वामपंथी होने में कोई शर्म नहीं। फिर कविता विचारधारा-निरपेक्ष नहीं होती। हर कविता की राजनीति होती है और होनी चाहिए। कोई कवि एक साथ वामपंथी और दक्षिणपंथी, दोनों नहीं हो सकता।

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    1. हाँ बिलकुल कविता और राजनीति अक्सर साथ साथ चलती हैं पर उस साथ का मैं यह अर्थ नहीं निकालता कि कोई इस कला को किसी पार्टी के राजनैतिक प्रोपागैंडा का जरिया बना दे।
      वो दिनकर का बयान था न कि जब कभी राजनीति लड़खड़ाई है, उसे कविता ने ही संभाला है । मैं अब भी इसी ढर्रे पर चलने का प्रयास कर रहा हूँ 😊😊

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  6. दो एक हुकुमत जीतोगे
    दो एक अगवा कर लोगे
    इतने में ही क्या मानचित्र
    राष्ट्र का भगवा कर लोगे ?
    बहुत ही शानदार सर

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  7. वाह ! वैभव sir शानदार कविता और ये लाईने ” कह देना उनको,यह कविता है
    राजनीति का जाल नहीं है
    मैं इन्द्रधनुष हूँ
    मेरा रंग सिर्फ लाल नहीं है ।”
    बहुत पसंद आयी
    Ashwani khandelwal *

    * A Human

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  8. आप बहुत खूबसूरत लिखते हैं…
    मै नही कहूँगी कि मुझे
    हर लफ्ज़ का अर्थ समझ आया
    पर ये दिल से लिखा जो आपने
    दिल को हमारे लुभा गया

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