नदारद

थोड़ी पुरानी रचना है पर शायद अब भी सार्थक है. 15 अगस्त 1947- बापू लाल किले पर ध्वजारोहण नही कर रहे थे,दंगों से प्रभावित इलाकों में भारत के मूल्यों की रक्षा में लगे हुए थे. क्या आज सत्तर वर्ष बाद भी वे आदर्श सुरक्षित हैं?

नदारद!

नहीं पालता शिकवे-गिले पर
उस भोर गाँधी नहीं थे लाल किले पर।

गरजें गोले काश्मीरी रस्तों पर
बरछे बरसे दलितों के दस्तों पर
हाँ, हाँ आजादी कि गूँज सुनो
चिपका लो तिरंगे अपने अपने बस्तों पर
लेकिन याद रहे ,आजादी के तो फूल खिले पर,
उस भोर गाँधी नहीं थे लाल किले पर ।

जलसे जमे माँ के नारों पर
बंधे बेड़ियाँ उन्मुक्त विचारों पर
करो!करो! करो! तुम कुठाराघात
जन जन के अधिकारों पर
लो चढ गए हम शौर्य के टीले पर,
उस भोर गाँधी नहीं थे लाल किले पर ।

नाराज हो समाज पर
बाज की नजर ताज पर
मत झुक इतना, हे स्वतंत्र!
राज की आवाज पर,

नाज कर स्वराज पर
अब नहीं अकाज कर
मैं खड़ा पास ही
आज ही आगाज कर

मैं भारत हूँ ,नहीं पालता शिकवे-गिले पर,
उस भोर गाँधी नहीं थे लाल किले पर ।।

– वैभव

78 thoughts on “नदारद”

  1. न गाँधी से ,न नेहरू से रखता हूँ इतफाक
    मुझे भाते है, भगत सिंह और अशफाक
    शास्त्री और पटेल सा हो समर्पण
    तो महकता है कोई भी चमन ।

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  2. सुंदर कृति। पढ़कर आनंदित हुआ। धन्यवाद रचना के लिए। ऐसे ही सुंदर रचना लिखते रहे हमारे लिए Vaibhaw ji

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  3. Wow!After reading your poem ,I have become your fan 🤗. Autograph please.Love it ❤.Thanks for following my blog.Amazing collection of poems .I would like to nominate you for Blue Tag Award.

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  4. Sorry, i not understand about your article, i have three question for you, the first, what topic your article? Second, what your name? And the last where do you live? Thanks for your visited my blog and follow blog me, i hope you always healthy and nice day in your live..

    Best regards : Widia Mulyani
    Nice to meet you!

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  5. ना जाने कौनसी, दौलत हैं..!
    कुछ दोस्तों के ,लफ़्जों में..!

    बात करते है तो.!
    दिल ही खरीद लेते हैं ..!

    —- एक “नदारद” चाहनेवाला

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      1. अवश्य
        कुछ लोगों को शिकायत होती है कि
        गुलाब में कांटे होते हैं,
        मैं शुक्रगुज़ार हूं कि कांटों को गुलाब
        का साथ मिला है…..

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      2. गजब की जिंदगी होती है शायरी लिखना….. खुद के खंजर से खुद की खुदाई करना ….

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  6. अनोखी रचना..कई लेख और किताबें पढ़ी हैं गाँधी जी के 15 अगस्त को दिल्ली में न होकर नोआखली जैसी जगहों पर होने के, लेकिन कविता कभी नहीं..खूबसूरती से बयाँ की है आपने बात.

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